कुपोषण एवं पोषण - एक अध्ययन
Author(s): गौरव प्रकाश दीक्षितAbstract
स्वतंत्रता के समय भारत खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं था और विभिन्न क्षेत्रों में खाद्यान्न का अभाव सामान्य बात थी। निर्धनता का बोलबाला था तीन-चैथाई भारतीय गरीब थे वे अपनी आय का तीन-चैथाई अंश भोजन पर खर्च करते थे। परन्तु तीन-चैथाई बच्चों का वजन औसत से कम था। बाल मृत्युदर काफी ऊंची थी। देश ने राष्ट्र-निर्माण में बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के महत्व को समझा और स्वास्थ्य एवं पोषण सेवाओं को सुलभ बनाने के लिए कदम उठाए। परन्तु विभिन्न क्षेत्रों में इन सेवाओं के विस्तार विषयवस्तु और गुणवत्ता में कुछ खामियां पाई गई हैं। उन लोगों को प्रायः ये सेवाएं प्राप्त नहीं हो पाती जिन्हें इनकी सबसे अधिक आवश्यकता है। भारत का खाद्य सहायता कार्यक्रम विश्व में सबसे बड़ा है। एकीकृत बाल विकास सेवाएं और विद्यालय मध्यान्ह् भोजन कार्यक्रम चैदह वर्ष तक के सभी बच्चों के लाभ के लिए बनाए गए हैं। तेजी से हो रहे आर्थिक विकास और सस्ते दरों पर खाद्यान्न की उपलब्धता तथा बच्चों के लिए पूरक खाद्य कार्यक्रमों के बावजूद पांच वर्ष की आयु तक के लगभग आधे बच्चे औसत से कम वजन के हैं। विडम्बना यह है कि पिछले दो दशकों में अति पोषण और मोटापे में उत्तरोत्तर वृद्धि दर्ज की गई है और यह अब शहरों के सम्पन्न बच्चों तक ही सीमित नहीं रह गई है। स्वास्थ्यविदों की चेतावनी है कि यदि प्रभावी कदम 35 द्य ू ू ू ण् े ं उ ं ह त ं ह ल ं द ण् ब व उ नहीं उठाए गए तो मोटापे के मामलों में भारी वृद्धि होने की आशंका है। बड़े होने पर इन बच्चों को मधुमेह और हृदयरोग का खतरा बढ़ जाएगा। लोग इन विरोधाभासों से हैरान हैं वे जानना चाहते हैं कि यह क्या हो रहा है बाल कुपोषण से क्या और कैसे लड़ा जा सकता है?