हिंदी साहित्य में स्त्री आत्मकथा लेखन और नारी अस्मिता
Author(s): ज्योति सिंहAbstract
स्त्री रचनाकारों का आत्मकथा साहित्य आज के दौर का परिपक्व साहित्य है। जैसे कथा साहित्य में स्त्री विमर्शों के केंद्र में स्त्री अस्मिता सहानुभूति पितृसत्तात्मक समाज धर्म जाति वर्ग प्रेम स्त्री संघर्ष विद्रोह और स्त्री मुक्ति के मुद्दे उठाये गये है और इनके माध्यम से ही स्त्री जीवन के विविध पक्ष भी उजागर हुए वैसे ही हिंदी साहित्य में स्त्री रचनाकारों के आत्मकथा साहित्य में स्त्री दृष्टि और स्त्री भाषा – शैली को दिखाता नज़र आता है। और मुख्यतः सारे विमर्शों और विधाओं के केंद्र में मुख्य चिंता यही रही कि आखिर स्त्री का वजूद उसका अस्तित्व क्या है? क्या कोई रास्ता है जिस पर वह आज़ादी से चल सके। इसलिए साहित्य के माध्यम से स्त्री सामाजिक काल्पनिकताओं से बाहर आने के लिए छटपटा रही है। और यही छटपटाहट 1990 में भूमंडलीकरण के आने के बाद हिंदी आत्मकथा साहित्य में भी दिखाई देता है जब आत्मकथा में पुरुष रचनाकारों के साथ स्त्री रचनाकारों का भी साहित्य जगत में हस्तक्षेप होता है। 1990 के दशक में भारतीय जीवन में प्रत्येक स्तर पर जो भी घटित हुआ उसे हिंदी के लगभग सभी रचनाकारों ने संवेदना और बुद्धि दोनों स्तर पर ग्रहण किया है। आज के जो लेखक-लेखिकाएं है उनके लेखन में भूमंडलीकरण का प्रभाव दिखाई देता है।