हिंदी दलित कहानियों में स्त्री पात्र
Author(s): विकाश कुमारAbstract
भारत की वर्ण आधारित जाति–व्यवस्था में यातना का लम्बा इतिहास है। अलग–अलग कालखंडो में इस व्यवस्था के खिलाफ विरोध और प्रतिकार होता रहता है। हिंदी में अम्बेडकरवादी विचारों एवं चेतना पर आधारित दलित कहानी लेखन का समय निर्धारण किसी निश्चित तिथि या वर्ष से निर्धारित नहीं किया जा सकता फिलहाल मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि सन् 80 के दशक से दलित चेतना पर आधारित कहानियाँ प्रकाश में आती हैं या यूँ कहें कि उन्हें अब महत्त्व दी जाती है। यह कहना तात्कालिक होगा कि इससे पूर्व दलित चेतना पर आधारित साहित्य सर्जना नहीं हुई होगी। विगत तीन दशकों में दलित साहित्य लेखन की ज़मीन बनने और उसे महत्त्व देने की वज़ह उत्तर भारत में बहुजन राजनीतिक आन्दोलन है। इस राजनीतिक आन्दोलन की चेतना बड़े पैमाने पर पाठक वर्ग को पैदा किया और वंचितों के अधिकार एवं सम्मान के प्रति अनुकूल वातावरण निर्मित किया।