हिंदी सिनेमा में दलित स्त्री
Author(s): मुशर्रफ अलीAbstract
भारतीय सिनेमा सौ साल से भी अधिक पुराना हो चुका है। ल्युमियेरे ब्रदर्स ने अपना पहला फिल्म प्रदर्शन पेरिस में दिसंबर 1885 में किया था। उसके सात माह बाद 7 जुलाई 1896 को बंबई के वाटसन होटल में सिनेमा उर्फ़ बाइस्कोप का प्रदर्शन हुआ। यहां ध्यान देने की बात यह है कि भारत में सिनेमा का उद्भव पेरिस के मात्र 7 महीने बाद ही हो गया था। इसके बाद सावे दादा जिनका पूरा नाम हरीश चंद्र सखाराम भाटवेड़कर है। उन्होंने 1897 में सर्वप्रथम एक लघु चित्र निर्मित किया था। इस फिल्म में तत्कालीन तो प्रसिद्ध पहलवानों पुंडलिक दादा और कृष्ण नहाबी के मल्लयुद्ध के कतिपय दृश्यों को चित्रित किया गया था। इस फिल्म का प्रदर्शन गेयटी थिएटर में किया गया था। लेकिन पहली फुल लेंथ फिल्म 1913 में दादा साहब धुंडीराज गोविंद फाल्के के द्वारा बनाई गई। फिल्म का नाम था राजा हरिश्चंद्र। फाल्के ने सबसे पहले एक छोटे से चित्र का निर्माण किया। जिसमें एक पौधे के विकास का चित्रण था। इस लघु चित्र का नाम the growth of a plant था जो 50 फुट लंबा था। इसके बाद उन्होंने सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के जीवन वृत्त को चुनकर उस पर पूरी लंबाई की फिल्म बनाना प्रारंभ कर दिया।.......राजा हरिश्चंद्र की सफलता से प्रेरित होकर फाल्के अनेक फिल्मों के निर्माण में जुट गए। सन् 1917 तक उन्होंने 23 फिल्मों का निर्माण किया। जिनमें कुछ का नाम इस प्रकार है- मोहिनी भस्मासुर सत्यवान सावित्री कालिया मर्दन कृष्ण जन्म ‘लंका दहन आदि। उनकी आखिरी फिल्म थी सेतु बंधन (1932) जिसमें उनको आर्देशिर ईरानी की 1931 में प्रदर्शित फिल्म आलम आरा के बाद सवाक फिल्मों के चलन के कारण आवाज डालनी पड़ी थी।