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स्त्री विमर्श (‘अन्या से अनन्या’ आत्मकथा के विशेष संदर्भ में)
Author(s): सुमि शर्मा

Abstract
समकालीन परिस्थितियों में स्त्री विमर्श एक बहुचर्चित विषय है। स्त्री और पुरुष इस संसार में एक सिक्के के दो पहलू मात्र है। एक-दूसरे के बिना सृष्टि का कल्पना करना ही व्यर्थ है। लेकिन आधुनिक समाज व्यवस्था में एक स्त्री को पुरुष की भाँति कभी सम्मान अधिकार नहीं मिल पायी जिससे अपनी सत्ता की मांग उठाने वाली आवाज स्त्री विमर्श के रूप में उभरने लगे। नारी जीवन के शोषण कुंठा संघर्ष अधिकार आदि को महिला लेखिकाओं ने अपने लेखनी के माध्यम से व्यक्त किया। नारी स्वयं को पुरुष के समकक्ष सृजन के क्षेत्र में स्थापित करने में सफल हो सकती है। स्त्री पुरुष के मध्य प्राकृतिक जैविक भेद के कारण भी स्त्री की मानसिक शक्ति कला सृजन में अपना विशेष स्थान रखती है। मूल रूप से स्त्री विमर्श पुरुष विरोधी आंदोलन नहीं है बल्कि पुरुष के समान अपना अधिकार पाने की अभिलाषा मात्र है। समकालीन लेखिकाओं में से डॉ. प्रभा खेतान का नाम भी उल्लेखनीय है। जिन्होंने मारवाड़ी समाज की रूढ़िवादिता परम्पराओं अधिकार अस्मिता प्रेम के ऊपर अनेक प्रश्नचिह्न लगाये है। इसके अतिरिक्त भी एक स्त्री की शोषण पीड़ा घुटन संघर्ष अकेलापन जैसे अनेक मुद्दों पर विचार मिलते हैं।