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प्रभा खेतान के उपन्यासों में नारी चेतना
Author(s): सुशीला बाई एवं डॉ. कविता भाटिया मेहता

Abstract
प्रभा खेतान बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक की बहुचर्चित उपन्यास लेखिका हैं। प्रभा खेतान ने स्त्री होने के नाते स्त्री की पीड़ा को पूरे वैश्विक जगत में महसूस किया और उनकी यह पीड़ा स्त्रीवादी चेतना के तहत मुखर हुई। प्रभा खेतान स्त्रीवादी लेखिका हैं। इसी कारण प्रभा खेतान की नारी चेतना मुख्यतः पितृसत्तात्मक व्यवस्था के विरोध में है जो स्त्रियों के हक और अधिकार को छीनते हुए अपने हाथों की कठपुतली बनाकर रखना चाहती है। नारी में निहित जागरूक शक्ति को नारी चेतना कहा जाता है। समाज सुधार के आन्दोलनों संवैधानिक सुविधाओं शिक्षा का प्रचार-प्रसार तथा लोकतंत्र में भागीदारी के कारण नारी चेतना में जागृति का भाव उत्पन्न हुआ है। आज नारी अपने अस्तित्व अस्मिता के प्रति सजग है। प्रस्तुत शोध पत्र में प्रभा खेतान के उपन्यासों में नारी चेतना के विविध आयाम सामाजिक आर्थिक धार्मिक सांस्कृतिक राजनीतिक चेतना का अध्ययन विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है।