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हिन्दी दलित कविता : स्वतंत्रता की धुंध में
Author(s): शीलू

Abstract
भारत सैकड़ों वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में बँधा रहा है। इन्हीं जंजीरों में जकड़े होने के कारण भारत की जनता को अनेक यातनाएँ झेलनी पड़ी हैं। विशेषतः दलितों को जातिगत नीच समझे कारण उन्हें अधिक प्रताड़ना साहनी पड़ती थी। अंग्रेजों से जब आज़ादी मिली तो दलितों को भी ये लगा कि उन्हें भी उनके अनेक दुखों से मुक्ति मिल गई जिसके परिणाम स्वरूप वे सरकार के गुणगान करने लगे और आज़ादी के फल के रूप में जातिगत भेदभाव और छुआछूत के अंत का जश्न मनाने लगे। साथ ही जनता के लिए सरकार ने जिन योजनाओं की घोषणा की उनसे दलितों का यकीन पक्का हो चल कि अब उनके दुख समाप्त हो जाएँगे। लेकिन यह स्वतंत्रता की धुंध थी जिसके कारण दलित अपनी बदतर स्थिति को देख नहीं पा रहे थे। उस दौरान दलित कविता का कलेवर किस प्रकार से बदला इसका अध्ययन इस शोध आलेख में किया गया है।