हरियाणवी में प्रकाशित सांग और रागनी ग्रंथावलियों की प्रमाणिकता
Author(s): योगेश डागर* डॉ. शिव कुमार**Abstract
सांग और रागनी हरियाणवी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। इनमें हरियाणा के जनजीवन संस्कृति और सामाजिक मूल्यों का सजीव चित्रण हुआ है। इस साहित्य की सर्जना में अनेक रचनाकारों का अमूल्य योगदान है जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हरियाणवी लोककला को संपूर्ण भारत में विशिष्ट पहचान दिलाई। इन रचनाकारों की रचनाएँ लम्बे समय तक मौखिक परम्परा में प्रवाहित रही और आज भी जनमानस के हृदय में बसी हुई हैं । समय के साथ इन महान कवियों की रचनाओं को संरक्षित और संकलित करने की आवश्यकता महसूस की गई जिसके परिणामस्वरूप उनकी ग्रंथावलियाँ या रचनावलियाँ प्रकाशित की गईं। ये ग्रंथावलियाँ हरियाणवी साहित्य की धरोहर को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज और माध्यम हैं। लेकिन विभिन्न प्रकाशनों से प्रकाशित इन ग्रंथावलियों में अंतरविरोध दिखाई पड़ता है जो पाठकों और शोधकर्ताओं के लिए जटिल प्रश्न खड़ा करता हैं कि कौन सी रचनाएँ असली और प्रमाणिक हैं? इस लेख का उद्देश्य इसी प्रश्न पर विचार करना है। हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि इन ग्रंथावलियों में पाई जाने वाली पाठ-भिन्नता के क्या कारण हैं? हम रचनाओं की प्रमाणिकता सुनिश्चित करने के उपायों पर भी विचार करेंगे।