श्यौराज सिंह ‘बेचैन’ की दलित कहानियाँ में चित्रित सामाजिक संघर्ष के विविध पक्ष
Author(s): राज कुमारAbstract
समकालीन दलित-विमर्श को श्यौराज सिंह बेचैन ने अपने लेखन के माध्यम से धारदार सृजनात्मक अभिव्यक्ति दी है और यह सिद्ध किया है कि वास्तविक यथार्थ की जमीन से उपजा दलित साहित्य असल में मानवीय सरोकार का साहित्य है। अगर साहित्य को समाज का दर्पण माना जाता है तो दलित-साहित्य पूर्ण रूप से उस दर्पण का हिस्सा है। यह भोगे हुए यथार्थ का प्रमाणिक दस्तावेज है जो स्वानुभूति की आँच पर तपकर हिन्दी साहित्यिक पटल पर अवतरित हुआ है। दलित साहित्य में जो यथार्थ-सत्य का ताप मौजूद है वैसा किसी अन्य साहित्य में परिलक्षित नहीं होता है। दलितों के संघर्ष शोषण गरीबी उत्पीड़न चेतना आदि को उजागर कर सामाजिक न्याय को स्थापित करना ही दलित साहित्य का मुख्य उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति में श्यौराज सिंह बेचैन की कहानियाँ अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है इनकी कहानियाँ दलित विमर्श के दायरे को विस्तृत करती है।