विज्ञापन भाषा की मनोवैज्ञानिक रणनीतियाँ: उपभोक्ता व्यवहार पर प्रभाव का अध्ययन
Author(s): डॉ. मनीषा तोमरAbstract
आज का समय उपभोक्तावाद और तकनीकी विकास से भरा हुआ है। ऐसे दौर में विज्ञापन सिर्फ किसी वस्तु या सेवा को बेचने का ज़रिया नहीं रह गया है बल्कि यह हमारे समाज संस्कृति और मनोविज्ञान पर गहरा असर डालने वाला माध्यम बन गया है। विज्ञापन अब केवल किसी प्रोडक्ट की जानकारी देने तक सीमित नहीं है बल्कि यह हमारी भावनाओं इच्छाओं और सामाजिक सोच को भी प्रभावित करता है। इस प्रभाव के केंद्र में जो चीज़ सबसे अहम भूमिका निभाती है वह है—भाषा। विज्ञापन की भाषा उसकी आत्मा होती है। यह सिर्फ किसी चीज़ की विशेषताएँ नहीं बताती बल्कि हमारे अंदर छिपी भावनाओं पहचान की चाहत सामाजिक स्वीकृति और संस्कृति से जुड़े भावों को भी जगाती है। चाहे विज्ञापन टीवी पर हो अख़बार में छपा हो या सोशल मीडिया पर दिखाया जा रहा हो—हर जगह भाषा एक ज़रूरी साधन बनकर सामने आती है। वह सिर्फ जानकारी नहीं देती बल्कि प्रेरणा देती है इच्छा जगाती है और हमारे व्यवहार को बदलने की ताक़त रखती है। उदाहरण के लिए—आप सिर्फ एक साबुन नहीं खरीद रहे आप आत्मविश्वास खरीद रहे हैं—ऐसे वाक्य बताते हैं कि विज्ञापन सिर्फ प्रोडक्ट की बात नहीं कर रहा बल्कि हमारे आत्मसम्मान और समाज में स्वीकार होने की भावना को भी छूने की कोशिश करता है। इस तरह की भाषा हमारे मन के उस हिस्से को प्रभावित करती है जो सीधे हमारे निर्णय लेने के तरीके को प्रभावित करता है।