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“सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से राजनीतिक लामबंदी तक: औपनिवेशिक और उपनिवेशोत्तर भारत में हिंदुत्व के ऐतिहासिक विकास की रूपरेखा”
Author(s): Ashok Kumar

Abstract
भारतीय राष्ट्रवाद की बहुआयामी प्रकृति में हिंदुत्व एक अत्यंत चर्चित जटिल और ऐतिहासिक रूप से विकसित वैचारिक धारा के रूप में उभर कर सामने आया है। यह न केवल धार्मिक पहचान का प्रश्न है बल्कि यह सांस्कृतिक पुनरुत्थान ऐतिहासिक अस्मिता और राजनीतिक लामबंदी से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। हिंदुत्व शब्द का सबसे व्यापक और विवादास्पद प्रयोग बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशक में विनायक दामोदर सावरकर द्वारा किया गया था परंतु इसकी जड़ें उससे भी पहले की सांस्कृतिक चेतना में निहित थीं। भारत के औपनिवेशिक अनुभव विदेशी शासन की प्रतिक्रिया और स्वाधीनता आंदोलन के भीतर वैचारिक विभाजनों ने हिंदुत्व को एक वैकल्पिक राष्ट्रवादी संरचना के रूप में गढ़ने में योगदान दिया।