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जलवायु अनुकूलन की सामाजिक संरचना: चरम मौसमीय घटनाओं के संदर्भ में ग्रामीण समुदायों की सहभागिता और रणनीतियाँ
Author(s): पूनम

Abstract
21वीं सदी में जलवायु परिवर्तन केवल एक पर्यावरणीय संकट नहीं रहा बल्कि यह एक सामाजिक एवं मानवतावादी चुनौती बन चुका है। इसके प्रभाव व्यापक और बहुआयामी हैं जो विशेषतः उन समुदायों को अधिक प्रभावित करते हैं जो प्राकृतिक संसाधनों पर अपनी आजीविका के लिए अत्यधिक निर्भर हैं। भारत जैसे विकासशील देश में जहां ग्रामीण क्षेत्र न केवल जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा समेटे हुए हैं बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं वहाँ जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को केवल पर्यावरणीय दृष्टि से नहीं बल्कि सामुदायिक परिप्रेक्ष्य से भी देखने की आवश्यकता है। यह एक बहुस्तरीय संकट है जो भूमि जल कृषि और स्वास्थ्य जैसे विविध क्षेत्रों में समन्वित प्रतिक्रिया की मांग करता है।