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21वीं सदी के हिन्दी उपन्यासों में चित्रित एलजीबीटी समुदाय
Author(s): सूर्य प्रताप सिंह

Abstract
21वीं सदी को विमर्शों की सदी माना जाता है इस सदी में एलजीबीटी समुदाय पर केंद्रित रचनाएँ लिखी जा रही हैं जिसमें उनके शारीरिकमानसिक ऊहापोह के साथ-साथ उनकी पारिवारिक सामाजिक आर्थिक शैक्षिक कानूनी आदि स्थितियों एवं संघर्षों को कलमबद्ध किया जा रहा है। 21वीं सदी में एलजीबीटी समुदाय साहित्य में जगह बनाने के साथ-साथ कुछ मूलभूत कानूनी अधिकार प्राप्त करने में भी सफल रहा है। उच्चतम न्यायालय ने 2014 में किन्नर समुदाय को तृतीय लिंग के रूप में मान्यता दी तथा 2018 में धारा 377 के एक अंश को निरस्त करते हुए समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध की श्रेणी से मुक्त किया। भारतीय समाज में एलजीबीटी समुदाय भले ही कानूनी मान्यता पाने में सफल रहा हो किन्तु सामाजिक मान्यता पाने के लिए आज भी संघर्षरत है।